The Basic Principles Of Shiv chaisa
The Basic Principles Of Shiv chaisa
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हे गिरिजा पुत्र भगवान श्री गणेश आपकी जय हो। आप मंगलकारी हैं, विद्वता के दाता हैं, अयोध्यादास की प्रार्थना है प्रभु कि आप ऐसा वरदान दें जिससे सारे भय समाप्त हो जांए।
दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने प्राचीन हनुमान मंदिर में पूजा किया
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे ।
Glory to Girija’s consort Shiva, who's compassionate to the destitute, who usually guards the saintly, the moon on whose forehead sheds its gorgeous lustre, and in whose ears would be the pendants in the cobra hood.
जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
भक्त अपने जीवन में पैदा हुई कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने के लिए श्री शिव चालीसा का नियमित पाठ करते हैं। श्री शिव चालीसा के पाठ से आप अपने दुखों को दूर कर भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद करना चाहिए। भक्त प्रायः सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत एवं सावन के पवित्र महीने के दौरान शिव चालीस का पाठ खूब करते हैं।
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, more info सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया Shiv chaisa से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।